Our Motto

Education, Propagation & Conservation of Cultural Heritage

So called Progressive Modern Theatre, influenced by leftist ideas in India, particularly in North India, has contributed a lot to deface the Indian culture at home and abroad; and it is continuing to do so. At present a faction of film and OTT serial producers have joined the fray. The progressive theatre productions are mainly centered on stereotype themes justifying adultery, defying ethical values and portraying Indian social structure as demonic. In such productions Hindu gods and goddesses are abused, Indian cultural icons are defamed; and these all are done in the name of 'liberalism'. ....... The sporadic exceptional negative examples; which are seldom witnessed by us in our family or neighborhood in everyday life; and despite our hate and resentment they have been occurring in all times and places; are showcased as the characteristic feature of Indian society and culture.
There is a lot of subjects so much important that with their adoption, theatre may elevate itself as an indispensable component of social life and education system. But these subjects never lure the main-stream theatre persons. They are dam-pleased with their own 'fakes and filths'.
This trend is not only the main hurdle in the path of commercialization of theatre in India, but this is also the main reason why has theatre been unable to make a place in the hearts of the people till now. To counter this evil, the repertory of FACES was formed as 'Nationalist Theatre' with an objective of steering theatre towards 'utilitarian creativity'.
The Nationalist Theatre of FACES, under the stewardship of theatre doyen Sunita Bharti, is determined to salvage theatre by transforming it from a ‘face of fakes' to a 'face of facts'. This repertory, in its productions, showcases tangible/intangible heritage, different aspects of Indian culture, heritage and ' tradition of knowledge'. Productions are designed to provide a healthy entertainment with an inherent objective of educational, moral and ethical upliftment of our society. In fact, Nationalist Theatre is presenting theatre as a tool of academic as well as mass education.
We are looking forward to rescue theatre from the 'relief-camp of government donations’ by transforming it in to an industry capable of providing creative opportunity and employment to theatre artists, who can not get their livelihood only from their art, at present.

भारत में, विशेष रूप से उत्तर भारत में वामपंथी विचारों से प्रभावित तथाकथित प्रगतिशील आधुनिक रंगमंच ने देश और विदेश में भारतीय संस्कृति की छवि को ख़राब करने में बड़ा योगदान दिया है; और यह प्रक्रिया जारी है। वर्तमान में फिल्मों और ओटीटी धारावाहिक निर्माताओं का एक बड़ा वर्ग इस कुप्रयास में शामिल हो गया है। प्रगतिवादी रंगमंच की प्रस्तुतियां घिसे-पिटे विषयों पर केंद्रित होती हैं, जो व्यभिचार को उचित ठहराते हैं, नैतिक मूल्यों को धता बताते हैं और 'भारतीय सामाजिक संरचना को दानवी के रूप में चित्रित करते हैं'; हिंदू देवी-देवताओं गाली देते हुए, भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकों की छवि ख़राब करते हैं; और यह सभी 'उदारवाद' के नाम पर किया जाता है। इनके नाटकों में छिटपुट नकारात्मक उदाहरणों को, जिसे हम अपने परिवार या पड़ोस में रोजमर्रा की जिंदगी में सामान्यतया अनुभव नहीं करते; और जो घृणास्पद होने बावजूद सभी देश और कालों में घटित होते रहे हैं; भारतीय समाज और संस्कृति के अभिलक्षण के रूप में प्रदर्शित किये जाते हैं।
बहुत से, और बहुत ही महत्वपूर्ण विषय सामने हैं, जिन्हें अपना कर रंगमंच को सामाजिक जीवन और शिक्षा प्रणाली के एक अनिवार्य घटक के रूप में स्थापित किया जा सकता है। लेकिन ये विषय कभी भी मुख्य धारा के रंगकर्मियों को नहीं लुभा पाते। वे अपने स्वयं के 'झूठ और गन्दगी' को ही रंगमंच का पर्याय मान चुके हैं।
यह प्रवृत्ति भारत में रंगमंच के व्यावसायीकरण के मार्ग में मुख्य बाधा है; और, यही वह कारण है जिससे रंगमंच अब तक लोगों के दिलों में जगह नहीं बना सका। इसी बुराई का मुकाबला करने के लिए, FACES के द्वारा 'उपयोगितावादी रचनात्मकता' की दिशा में रंगमंच के विकास हेतु 'राष्ट्रवादी रंगमंच' नामक रिपर्टरी की स्थापना की गई है। प्रसिद्द रंगकर्मी सुनिता भारती के नेतृत्व में यह रिपर्टरी, रंगमंच को 'झूठ के चेहरे’ से 'तथ्यों के चेहरे' में परिवर्तित कर प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्प है।
यह रिपर्टरी, अपनी प्रस्तुतियों में, मूर्त / अमूर्त विरासत, भारतीय संस्कृति और परंपराओं के विभिन्न पहलुओं के साथ-साथ 'भारतीय ज्ञान परंपरा' को प्रदर्शित करता है। स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ समाज का शैक्षिक, नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान इस संस्था का प्रधान उद्देश्य है। वास्तव में, ‘राष्ट्रवादी रंगमंच’ रंगमंच को अकादमिक और सामूहिक शिक्षा के लिए एक उपकरण के रूप में प्रस्तुत कर रहा है।
हमारा प्रयास रंगमंच को ‘सरकारी दान के राहत-शिविर’ से उबार कर उसे कलाकारों को रचनात्मक अवसर और रोजगार प्रदान करने में सक्षम एक उद्योग के रूप में स्थापित करना है, ताकि कलाकार अपनी कला के बदौलत एक खुशहाल जीवन जीते हुए अपनी सारस्वत-वृत्ति में समर्पित रह सकें।
We welcome young aspiring artists in to this repertory!
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And, help us make theatre an industry.
Member Artists

Kumud Ranjan

Rajveer Gunjan

Mithilesh Kumar Sinha

Shubham Singh

Nandlal Singh

Ravi Kumar

Awadheshwar Das

Anju Kumari

Ramchandra Singh

Manoj Mayank

Anshuman Kumar

Saurabh Safari

Md. Sadaruddin

Manish Bali

Md. Sadre Alam

Rohan Srivastav

Surabhi Krishna

Aarti Singh

Atul Rajvir

Ram Lakhan Singh

Suraj Kr Singh

Suraj Lal

Vikas Kr Mishra

Subhadra Singh

Sunita Bharti
Director

Dr. Shankar Suman
Researcher

Arvind Kumar
Writer